Sadhana Shahi

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बिखरे मोती (ग़ज़ल) प्रतियोगिता हेतु03-Apr-2024

दिनांक- 03,04, 2024 दिवस- बुधवार प्रदत्त विषय- बिखरे मोती (प्रतियोगिता हेतु )

आंँखों से निकले मोती जमीं पर बिखर गए, इसे देखकर न कोई अपने सिहर गए।

ऐसे करतबों को देखके हम तो निथर गए, उनकी बेरुखी से हम तो कितने निखर गए।

जो मन में था अमावस पूनम से डर गए, अवसाद छू हुआ है खुशियों से भर गए।

वो सोचते हैं ऐसा उन बिन हम मर गए, तुझे क्या बताऊंँ छलिया ऐबों से निकर गए।

बिखर के सारे मोती जाने किधर गए, बड़ा कीमती है जीवन अब ना सिफ़र भए।

समेट लूँ वो मोती जो है छितर गए, पावन हुए हैं ऐसे मानो पीतर भए।

नया माला मैं बनाऊँ हैं हम पियर भए, हीरे से जो हैं अपने उनके नियर भए।

अब बिखरे ना वो मोती जो हैं मिहर भए, आभा गहे हैं अद्भुत कहीं ना निहर जए।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 12:38 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Shnaya

11-Apr-2024 05:03 PM

V nice

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Gunjan Kamal

04-Apr-2024 01:46 AM

शानदार

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